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मैं अपने गमों को ढोती हूँ जैसे एक चींटी
दूसरी को
साँस लेने की कोई मुहलत नहीं!
आग की यादें
किसी जगह से
अपने तक
लेकिन कौन सी
लंबी!
इस पुरानी दुनिया की मेहमान
मैं इन पर फूँक मारती हूँ
मेरी देह में हवा की मात्रा
कम हो रही है
बाकी दुनिया
जो मेरे पीछे है
सूख रही है
मेरी रूह के बीज
मेरी रूह में है
पितृभूमि की तरह
जिंदा रहने और दूर और
मृत्यु से पहले की कामना भी मर गई
कौन
यहाँ धरती है
फनाई जाने को
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